लेख : हसनैन मुबश्शिर उस्मानी
आज मुझे नानी अम्मा के बगल में लेटकर सुनी गई वो कहानी याद आ रही है कि एक तोते के मालिक किसी वजह से अपने तोते से नाराज था और उसे सज़ा देना चाहता था . आखिर उसने उसे सजा देने का एक निराला तरीका निकाला . उसने सोचा आज मैं इस बदतमीज तोते को खूब दोड़ाउंगा , इसलिए उसने तोते का पिंजरा उठाया और इसे लेकर खूब दौड़ा और जब थक हार कर बैठा तो बोला " साले को खूब दौड़ाया . "
हाँ यही हाल हमारे राजनेताओं का है . अब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को ही देखिए . बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग पर मुख्यमंत्री ने दो मार्च को बिहार बंद का ऐलान किया है . जरा सोचिए इस बिहार बंद से किसको कितना नुकसान किसको कितना लाभ होगा . यह सही है कि मुख्यमंत्री अपने मांग में उचित है लेकिन अगर सरकार खुद ही बंद का ऐलान करेगी तो इससे राज्य को कितना नुकसान होगा । समीक्षक बताते हैं कि एक बार बंद में सरकार को करोड़ों रुपये का नुकसान होता है इस पर यह भी आवश्यक नहीं है कि केंद्र उनकी बात मान ले तो इस तरह वह कहावत भी सच हो जाएगा कि कड़की में आटा गीला । यानी न तो राज्य को विशेष राज्य का दर्जा मिल कर कर कोई वित्तीय लाभ होगा और उल्टे राज्य का जो नुकसान होगा सो अलग । .
. बंद चाहे सरकार हो या भाजपा की ओर से . दोनों ही स्थिति में सबसे अधिक परेशानी आम आदमी को उठानी पड़ेगी ।. चाहे 28 फरवरी भाजपा के रेल रोको आंदोलन हो या 2 मार्च को नितीश कुमार का बिहार बंद बीच में कुचल जाएगा तो आम आदमी . बंद के दौरान सार्वजनिक जीवन कैसे प्रभावित होता है इसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता . आज असंवेदनशीलता जो आलम है बंद से अपना नुकसान होने के अतरिक्त और कोई लाभ नहीं ।.
कोई भी बंद आम नागरिकों के लिए बवाल जान बन जाता है . लोग अपने घरों में कैद हो जाते हैं . सबसे परेशानी मरीजों को होती है जिनका अस्पताल पहुंचना मुश्किल हो जाता है। बंद समर्थक बिना भेद भाव बाजारों में दुकानों के शीशे तोड़ते नजर आते हैं और हिंसा का बाजार गर्म नज़र आता है। लेकिन कोई भी ठंडे दिल से यह नहीं सोचता कि इस कदम से नुकसान किसका हो रहा है क्या सरकार के कानों पर इन सबसे ज्यों रेंगने वाली है या उन का जिनकी भलाई का बीड़ा उसने उठा रखा है ।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा है कि उन्होंने पहली मार्च को यूपीएससी की परीक्षा होने के कारण दो मार्च की तारीख रखी लेकिन नीतीश जी आम आदमी के लिए जरूरी काम सिर्फ एक दिन नहीं होता उन के लिए एक एक पल इतना ही कीमती होता है. वह दिन भर काम करता है तो अपने बच्चों को दो वक्त की रोटी खिला पाता है।
वैसे तोते को पिंजरे में लेकर दौड़ाने में कोई किसी से पीछे नहीं। हाँ अभी दिल्ली में पिछले डेढ़ महीने तक कांग्रेस केजरीवाल सरकार को पिंजरे में लेकर दौड़ती ही तो रही। इस दौड़ में थक कौन गया हमें बताने कि जरूरत नहीं।
चुनाव के आगमन के साथ ही हर राजनीतिक दल के हाथ में एक पिंजरा नज़र आ रहा है जो बंद तोते को लेकर दौड़ लगा रहे हैं। भाजपा भी किसी से पीछे नहीं अब देखना है चुनाव तक कौन कितनी दौड़ लगाता है और इससे ' तोते ' को कितना नुकसान पहुंचता है ।
आज मुझे नानी अम्मा के बगल में लेटकर सुनी गई वो कहानी याद आ रही है कि एक तोते के मालिक किसी वजह से अपने तोते से नाराज था और उसे सज़ा देना चाहता था . आखिर उसने उसे सजा देने का एक निराला तरीका निकाला . उसने सोचा आज मैं इस बदतमीज तोते को खूब दोड़ाउंगा , इसलिए उसने तोते का पिंजरा उठाया और इसे लेकर खूब दौड़ा और जब थक हार कर बैठा तो बोला " साले को खूब दौड़ाया . "
हाँ यही हाल हमारे राजनेताओं का है . अब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को ही देखिए . बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग पर मुख्यमंत्री ने दो मार्च को बिहार बंद का ऐलान किया है . जरा सोचिए इस बिहार बंद से किसको कितना नुकसान किसको कितना लाभ होगा . यह सही है कि मुख्यमंत्री अपने मांग में उचित है लेकिन अगर सरकार खुद ही बंद का ऐलान करेगी तो इससे राज्य को कितना नुकसान होगा । समीक्षक बताते हैं कि एक बार बंद में सरकार को करोड़ों रुपये का नुकसान होता है इस पर यह भी आवश्यक नहीं है कि केंद्र उनकी बात मान ले तो इस तरह वह कहावत भी सच हो जाएगा कि कड़की में आटा गीला । यानी न तो राज्य को विशेष राज्य का दर्जा मिल कर कर कोई वित्तीय लाभ होगा और उल्टे राज्य का जो नुकसान होगा सो अलग । .
. बंद चाहे सरकार हो या भाजपा की ओर से . दोनों ही स्थिति में सबसे अधिक परेशानी आम आदमी को उठानी पड़ेगी ।. चाहे 28 फरवरी भाजपा के रेल रोको आंदोलन हो या 2 मार्च को नितीश कुमार का बिहार बंद बीच में कुचल जाएगा तो आम आदमी . बंद के दौरान सार्वजनिक जीवन कैसे प्रभावित होता है इसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता . आज असंवेदनशीलता जो आलम है बंद से अपना नुकसान होने के अतरिक्त और कोई लाभ नहीं ।.
कोई भी बंद आम नागरिकों के लिए बवाल जान बन जाता है . लोग अपने घरों में कैद हो जाते हैं . सबसे परेशानी मरीजों को होती है जिनका अस्पताल पहुंचना मुश्किल हो जाता है। बंद समर्थक बिना भेद भाव बाजारों में दुकानों के शीशे तोड़ते नजर आते हैं और हिंसा का बाजार गर्म नज़र आता है। लेकिन कोई भी ठंडे दिल से यह नहीं सोचता कि इस कदम से नुकसान किसका हो रहा है क्या सरकार के कानों पर इन सबसे ज्यों रेंगने वाली है या उन का जिनकी भलाई का बीड़ा उसने उठा रखा है ।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा है कि उन्होंने पहली मार्च को यूपीएससी की परीक्षा होने के कारण दो मार्च की तारीख रखी लेकिन नीतीश जी आम आदमी के लिए जरूरी काम सिर्फ एक दिन नहीं होता उन के लिए एक एक पल इतना ही कीमती होता है. वह दिन भर काम करता है तो अपने बच्चों को दो वक्त की रोटी खिला पाता है।
वैसे तोते को पिंजरे में लेकर दौड़ाने में कोई किसी से पीछे नहीं। हाँ अभी दिल्ली में पिछले डेढ़ महीने तक कांग्रेस केजरीवाल सरकार को पिंजरे में लेकर दौड़ती ही तो रही। इस दौड़ में थक कौन गया हमें बताने कि जरूरत नहीं।
चुनाव के आगमन के साथ ही हर राजनीतिक दल के हाथ में एक पिंजरा नज़र आ रहा है जो बंद तोते को लेकर दौड़ लगा रहे हैं। भाजपा भी किसी से पीछे नहीं अब देखना है चुनाव तक कौन कितनी दौड़ लगाता है और इससे ' तोते ' को कितना नुकसान पहुंचता है ।
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